Monday 6 October 2014

One Poem to Start Life With

नमस्ते मित्रों,

मेरी जीवन के प्रथम ब्लॉग में आप सभी का स्वागत एवं अभिनन्दन! कुछ ऐसे क्षण, कुछ ऐसी शिक्षाएं जो हमें इस जीवन से मिली हैं, वे मुझे अविरत ही प्रेरित करती हैं, आप सभी से इन्हें बाँटने हेतु। आशा करता हूँ आपके हृदय के, मन मस्तिष्क के कुछ तार, अवश्य ही मेरा यह ब्लॉग सफल होगा छूने में। इसी आशा के साथ मैं अपने जीवन की प्रथम ऐसी कविता जिसने मेरे मन में कहीं न कहीं कोई छाप छोड़ी है, आपके साथ बाँटता (आपसे शेयर करता) हूँ।



कविता का शीर्षक है - वीर तुम बढ़े चलो
कवि - द्वारिका प्रसाद महेश्वरी


वीर तुम बढ़े चलो!
धीर तुम बढ़े चलो!

हाथ में ध्वजा रहे 
बाल दल सजा रहे 
ध्वज कभी झुके नहीं 
दल कभी रुके नहीं 
वीर तुम बढ़े चलो!
धीर तुम बढ़े चलो!

सामने पहाड़ हो 
सिंह की दहाड़ हो 
तुम निडर डरो नहीं 
तुम निडर हटो नहीं 
वीर तुम बढ़े चलो!
धीर तुम बढ़े चलो!

प्रात हो कि रात हो 
संग हो न साथ हो 
सूर्य से बढ़े चलो
चन्द्र से बढ़े चलो 
वीर तुम बढ़े चलो!
धीर तुम बढ़े चलो!

एक ध्वज लिए हुए 
एक प्रण किये हुए 
मातृ भूमि के लिए 
पितृ भूमि के लिए 
वीर तुम बढ़े चलो!
धीर तुम बढ़े चलो!

 अन्न भूमि में भरा 
वारि भूमि में भरा 
यत्न कर निकाल लो 
रत्न भर निकाल लो 
वीर तुम बढ़े चलो!
धीर तुम बढ़े चलो!

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